बड़ी खबर- हिमाचल-उत्तराखंड को तोड़ने की बड़ी कौशिश ddnewsportal.com

बड़ी खबर- हिमाचल-उत्तराखंड को तोड़ने की बड़ी कौशिश
इन्हे समय पर न रोका गया तो करवायेंगे बड़ा हादसा,
सवाल! आखिरकार क्यों मूक दर्शक बन गया है दोनों प्रदेशों का प्रशासन...?
पिछले लंबे समय से हिमाचल और उत्तराखंड को तोड़ने की बड़ी कौशिश को अंजाम दिया जा रहा है लेकिन इस और न तो दोनों प्रदेशों की सरकारें ध्यान दे रही है और न ही प्रशासन। हम तोड़ने शब्द का इसलिए इस्तेमाल कर रहे हैं कि जो कारनामे आजकल दोनों प्रदेशों को जोड़ने वाले एकमात्र सेतू के नीचे चल रहे हैं वो एक दिन बड़ा हादसा करवाएगी। यदि पुल को नुकसान हुआ तो दोनों प्रदेशों का संपर्क एक दूसरे से लंबे समय के लिए टूट जाएगा। बात पांवटा साहिब और कुल्हाल के बीच बने यमुना पुल की हो रही है। यहां पहले तो पुल के आसपास अवैध और अवैज्ञानिक खनन को बड़े स्तर पर अंजाम दिया जा रहा था जो शासन प्रशासन भी देख रहा था। लेकिन कोई कारवाई न होने के चलते अब खनन करने वालों की हिम्मत इस कदर बढ़ गई है कि अब
ये पुल के नीचे पंहुचकर सेतु की जड़े खोदने लग गये है। मंगलवार तड़के ही पुल के नीचे खनन करने पंहुचे लोगों का एक वीडियो मीडिया तक भी पंहुचा। इस वीडियो मे स्पष्ट नजर आ रहा है कि किस तरह पुल के ठीक नीचे बड़े बड़े गड्ढे बनाए गये है। अवैध खनन करने वाले दिन दहाड़े रेत बजरी बेचने के चक्कर मे यह भी भूल गये हैं कि वह पुल को नुकसान पंहुचा रहे है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह खनन पिछले लगभग तीन माह से दिन दहाड़े चल रहा है और दोनों प्रदेशों के प्रशासन को भी इसकी शिकायतें हुई है बावजूद इसके कोई कारवाई न होना जनता की समझ से परे हैं। अब जनता पूछने लगी है कि आखिरकार प्रशासन चुप्पी क्यों साधे हुए हैं। उधर, पुल बचाने के लिए संघर्ष कर रही यमुना पुल बचाओ संघर्ष समीति ने भी इस अवैध खनन पर कार्रवाई न होने पर चिंता जताई है। समीति के पदाधिकारी अनिन्द्र सिंह नौटी ने कहा कि यह समझ नही आ रहा कि अवैध खनन माफिया दिन दहाड़े
नदी मे खनन कर रहे हैं तो इन पर कार्रवाई क्यों नही हो रही। एक गरीब आदमी अपने घर की मुरम्मत के लिए यदि थोड़ी बहुत रेत बजरी ले आएं तो उसका चालानाकर जुर्माना वसूला जाता है लेकिन यहाँ महिनों से बड़े स्तर पर खनन हो रहा है लेकिन कोई कारवाई नही हो रही। उन्होंने कहा कि अब तो हद हो गई है कि यह खनन करने वाले यमुना पुल के नीचे पंहुचकर खनन कर पुल की जड़े कमजोर करने मे जुट गये हैं। इस तरह की कार्य प्रणाली दोनो प्रदेशों के शासन प्रशासन पर सवाल जरूर उठाती है। यदि इन पर अंकुश नही लगाया गया तो पुल बचाने के लिए संघर्ष का रास्ता अपनाया जाएगा।